History of Jaunpur Fort : जौनपुर किले का विरासतपूर्ण इतिहास

जौनपुर किले का विरासतपूर्ण इतिहास

शाही किला या जौनपुर का किला उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शहर जौनपुर में गोमती नदी के किनारे स्थित है। यह किला रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है और इसका समृद्ध इतिहास और अद्भुत वास्तुकला है। यह किला लगभग 600 साल से जौनपुर के इतिहास का मूक साक्षी रहा है, जिसमें कई परिवर्तन हुए हैं।

स्थापना और शुरुआत:

दिल्ली सल्तनत के फिरोज शाह तुगलक ने १४वीं शताब्दी के अंत में जौनपुर किले की नींव रखी। इस शहर को फिरोज शाह तुगलक ने अपने चचेरे भाई और संरक्षक मुहम्मद बिन तुगलक (जिसका असली नाम जौना खान था) की याद में बनाया था, इसलिए इसका नाम जौनपुर पड़ा। फिरोज शाह तुगलक के शासनकाल में किला बनाया गया था, लेकिन इसे पूरा करने का श्रेय शरकी वंश के शासकों को जाता है।

1394 से 1479 ईस्वी तक शरकी वंश ने जौनपुर पर शासन किया, जिससे यह कला, संस्कृति और शिक्षा का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। शरकी शासकों ने किले को मजबूत बनाया। इस वंश के शासकों में मलिक सरवर, मुबारक शाह, इब्राहिम शाह और हुसैन शाह थे, जिन्होंने जौनपुर को “शिराज-ए-हिंद” (भारत का शिराज) की उपाधि दी।

शरकीय शासनकाल में किले की भूमिका:

जौनपुर किला शरकी शासनकाल में राजनीतिक और सैन्य गतिविधियों का केंद्र था। गोमती नदी के किनारे स्थित होने के कारण यह किला बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि यह व्यापार और आवागमन को नियंत्रित कर सकता था। किले में शासकों के घर, दरबार और सैन्य छावनियां थीं।

शरकी राजाओं ने किले के भीतर कई महत्वपूर्ण संरचनाएं बनाईं, जिनमें अटाला मस्जिद का प्रवेश द्वार सबसे महत्वपूर्ण है। अटाला मस्जिद किले के बाहर है, लेकिन इसका सुंदर प्रवेश द्वार किले की वास्तुकला का एकमात्र हिस्सा है। इस प्रवेश द्वार में हिंदू और इस्लामी वास्तुकला की सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है, जो शरकी कला की विशिष्टता है।

मुगल काल और बाद में:

1479 ई. में बहलोल लोदी ने शरकी राजवंश को पराजित कर जौनपुर को दिल्ली सल्तनत में शामिल कर लिया। इसके बाद जौनपुर मुगल साम्राज्य में शामिल हो गया। मुगल काल में भी जौनपुर किला महत्वपूर्ण था, लेकिन अब दिल्ली के केंद्रीय शासन के अधीन एक प्रांतीय मुख्यालय है।

मुगल राजाओं ने किले की मरम्मत और देखभाल पर जोर दिया। अकबर की राजधानी में किले में कुछ नए निर्माण भी जोड़े गए। मुगल काल में जौनपुर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र था, और इसके किले ने राज्य को स्थिर और सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

18. शताब्दी में मुगल साम्राज्य कमजोर होने के बाद जौनपुर पर कई स्थानीय शासकों का प्रभुत्व रहा। इस दौरान किले ने बहुत सी लड़ाइयां देखीं।

Британी शासन और वर्तमान स्थिति:

18. शताब्दी के अंत में, जौनपुर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन आ गया। ब्रिटिश शासन के दौरान किले को सरकारी और सैन्य उद्देश्यों से उपयोग किया गया था। इस किले ने 1857 के भारतीय विद्रोह में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया था।

स्वतंत्रता के बाद जौनपुर किला भारत सरकार के अधीन आया और एक संरक्षित स्मारक घोषित किया गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) वर्तमान में इस किला को संरक्षित रखता है। किले के भीतर की कुछ संरचनाएं समय के साथ नष्ट हो गई हैं, लेकिन मुख्य द्वार, दीवारें और कुछ अन्य अवशेष आज भी इसकी महानता बताते हैं।

किले का निर्माण:

जौनपुर किले की वास्तुकला में हिंदू और इस्लामी शैलियों का सुंदर समन्वय है, जो शरकी कला की एक विशेषता है। किले की दीवारें विशाल, मजबूत पत्थरों से बनाई गई हैं, जो उसकी रक्षा क्षमता को दिखाते हैं। किले में बहुत से प्रवेश द्वार थे, जिनमें से कुछ अब नहीं रहे हैं।

किले के भीतर कुछ महत्वपूर्ण संरचनाओं में शाही मस्जिद (अब खंडहर) और कुछ और अवशेष शामिल हैं। किले के बाहर स्थित अटाला मस्जिद का सुंदर प्रवेश द्वार शरकी वास्तुकला का एक अच्छा उदाहरण है। इसमें सुंदर नक्काशी, ऊंचे मेहराब और हिंदू मंदिरों से प्रेरित स्तंभ हैं।

निष्कर्ष:

जौनपुर का किला एक ऐतिहासिक स्मारक है, लेकिन यह भी उस विशाल सांस्कृतिक और राजनीतिक विरासत का प्रतीक है जिसने इस शहर को बनाया। यह किला सदियों से जौनपुर का इतिहास समेटे हुए है, फिरोज शाह तुगलक की स्थापना से लेकर शरकी वंश का गौरवशाली शासन और मुगल काल का महत्व। जौनपुर किला आज भी अपनी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व के साथ दर्शकों को आकर्षित करता है और भारत के गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है, हालांकि कुछ संरचनाएं खंडहर में बदल गई हैं। यह किला जौनपुर की ऐतिहासिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे बचाना हमारी जिम्मेदारी है।

LOKWANI TIMES TEAM

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